मंगलवार, 18 फ़रवरी 2025

फूल खिलने को दरमियाँ चाहिए [ नवगीत ]

 093/2025

  

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


आशाओं के फूल

खिलने को

दरमियाँ  भी  चाहिए।


भटकते ही हैं

हम कभी न कभी

मंजिल  नहीं मिलती

मुरझा भी जाती हैं

अधखिली कलियाँ

हर कली नहीं खिलती

कली-कली को

जो जगा पाए

सुरभियाँ भी चाहिए।


कभी तेज

धूप है

कभी   झिंझोड़ती हवाएँ

उड़ती हुई 

धूल कभी

कहर ढहाती-सी फिजाएँ

सोए हुओं को

जगाने के लिए

मुर्गे -मुर्गियाँ  भी चाहिए।


चला चल तू

राह में अपनी

रुकना ही नहीं है

क्या पता

दो ही कदम पर

मंजिल भी यहीं है

चाहें बहार वर्षा की

दहकती- चहकती

गर्मियाँ  भी चाहिए।


शुभमस्तु !


17.02.2025●11.45 आ०मा० 

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