बुधवार, 26 फ़रवरी 2025

सकल साधना का सुख साधन [गीत]

 117/2025

 


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


सकल साधना का सुख साधन

मानव तेरी देह।


मल-मल देह धुले गंगा में

जैसे लगी मशीन

साधु संत नागा सब आए

गोरी बड़ी हसीन

अब तक के धो पाप सभी लो

रहे न तन अघ- खेह।


नेता सभी अघोरी बाबा

गबनी पापी चोर

कुंभ लगा है भारी देखो

मचा रहे हैं शोर

'पहले मैं' की होड़ लगी है

शेष न धैर्य सनेह।


वी आई पी का इंतजाम है

इनमें भी कुछ खास

आम न समझे कोई उनको

और नहीं उपहास

मानव का सैलाब उमड़ता

बहता ज्यों अवलेह।


यहाँ न पर्दा शेष न गर्दा

उछल-उछल सरि तीर

प्रथम लगा ले अपनी बारी

बन जा सबसे मीर

किस्मत के सब द्वार खुले हैं

तनिक नहीं संदेह।


'अंधा है विश्वास' कहा तो

आस्था का हो नाश

नहीं रहोगे धर्म धुरंधर

बन  शंका का ग्रास

भेड़दौड में बढ़े चलो सब

पावन कर नर गेह।


शुभमस्तु !


25.02.2025●6.45 आ०मा०

                  ●●●

[9:23 pm, 25/2/2025] DR  BHAGWAT SWAROOP: 118/2025

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...