बुधवार, 5 फ़रवरी 2025

मानव बड़ा अधीर है [ सजल ]

 058/2025

      


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


समांत          : आर

पदांत           :अपदांत

मात्राभार       :24.

मात्रा पतन    : शून्य


गंगा    यमुना   सरस्वती, प्रियल त्रिवेणी   धार।

अग-जग को नित तारती,करती जन उपकार।।


महाकुंभ     मेला    लगा,  तीरथराज    प्रयाग।

मन मैला    अघ  ओघ  से,मन का मैल   उतार।।


नहा    रहे   सब जानते,  धर   पापों का  बोझ।

एक   जीव    होता  नहीं,  वैतरणी  के    पार।।


मानव  बड़ा  अधीर   है,  मात्र मुझे ही  लाभ।

मिले, न  मानव  अन्य  को,सुमनों का उपहार।।


होनी    ही    होकर    रहे, अनहोनी की   बात।

करें   मूढ़  जन  लोक में, बंद बुद्धि के    द्वार।।


मानव   अपनी  भूल  को, नहीं मानता  पाप।

वृथा    भौंकता   श्वान-सा,   बिलखे बारंबार।।


भला - बुरा  सब जानते,पाप  और क्या  पुण्य।

किंतु  गंग  जलधार    से,  मान   रहे उपचार।।


शुभमस्तु !


02.02.2025● 10.45प०मा०

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