109/2025
©लेखक
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
यह बात सन 1982-83 की है। उस समय मैं रुहेलखंड विश्वविद्यालय बरेली का परीक्षक होने के साथ -साथ उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद, इलाहाबाद का परीक्षक भी नियुक्त हो गया था। बीसलपुर में माताजी स्व.श्रीमती श्यामादेवी जी के मकान में रहते हुए उन्होंने मुझे सुझाव दिया कि पीलीभीत से रोज बस से आने- जाने की जरूरत नहीं है;वहीं पर उनकी सहेली श्रीमती रोहिणी देवी जी का मकान है ;वहीं पर रुक कर कॉपियाँ जाँचने का काम कर लेना। मैंने कहा ठीक है।
मई या जून का महीना था। तेज गर्मी का वातावरण था। पहले दिन मैं बहन जी रोहिणी देवी के यहाँ न रुककर बीसलपुर के ही एक अन्य अध्यापक के यहाँ रात्रि विश्राम के लिए चला गया। किंतु पहले ही दिन उस घर और परिवार का दूषित वातावरण देखा तो एक रात में ही मेरा मन भर गया।मुझे उनसे वितृष्णा हो गई। मुझे प्रतीत हुआ कि जैसे उन लोगों पर बोझ हूँ। आँखों देखी गई वास्तविक स्थिति का उल्लेख करना उचित नहीं समझते हुए उसे विलुप्त ही रखता हूँ। किंतु जो वातावरण उस परिवार के लोगों के बीच देखा ,वह मुझे सर्वथा नागवार गुजरा। जिस बात की कल्पना भी नहीं की जा सकती वही सब कुछ जब देखने को मिला तो उन सबसे मुझे घृणा हो गई और दूसरे दिन भोजन की बात तो दूर बिना नाश्ता किए हुए ही मैं अपने मूल्यांकन कार्य के लिए चला गया।
उसी दिन अपना काम निबटाने के बाद बहन जी रोहिणी देवी जी के घर का रुख किया। माताजी श्यामा देवी जी द्वारा बताए गए पते पर जा पहुँचा। उस समय शाम के लगभग 4-5 बजे का समय रहा होगा।घर तो मुझे मिल गया था ,किन्तु बहन जी रोहिणी देवी मुझे नहीं मिलीं। दूसरी मंजिल पर पहुँचा तो कुछ तसल्ली मिली। वहां पर उन्हीं की एक विवाहिता पुत्री ,जिसकी उम्र लगभग 24-25 वर्ष की रही होगी;मिली। उसने मुझे बताया कि अभी मम्मी तो आई नहीं हैं ,थोड़ी बहुत देर में आ जायेगीं। मैंने उन्हें अपना परिचय दिया और आने का उद्देश्य भी स्पष्ट किया । उन्होंने अपनी आत्मीयता से बहन जी के अभाव का कोई अहसास नहीं होने दिया। औपचारिक आवभगत के बाद उनकी पुत्री ने मुझे भोजन कराया और बाहर पोर्च में एक चारपाई पर बिस्तर लगा दिया ,ताकि मैं उस पर आराम कर सकूँ।
माता जी रोहिणी देवी की बेटी ने मेरे बिस्तर के पास एक टेबिल फैन भी चला दिया ,ताकि मुझे गर्मी का अहसास न हो।थका हुआ होने के कारण थोड़ी ही देर में मुझे नींद आ गई और मैं सो गया। फिर मुझे नहीं पता कि माता जी कब आईं। उनसे भेंट सुबह ही हो सकी।पता नहीं कब पंखें की शीतल हवा में ठंडाते हुए महसूस करके उस देवी ने मुझे एक चादर भी ओढ़ा दी। कुछ देर बाद मेरे ऊपर चादर देखकर मुझे आभास हुआ कि मैं कुछ ओढ़े हुए हूँ,तो इस अहसास से मैं अभिभूत हो उठा कि उस लड़की को मेरा कितना खयाल है कि उसने मेरी आवश्यकता महसूस की और चादर
ओढ़ाई। मैं उस बेचारी का कोई भी तो नहीं लगता था, न पिता,न भाई,न पति न और कोई सगा सम्बन्धी ही।मानवता का ऐसा आदर्श और सुघर निदर्शन मुझे पहले ऐसा कभी भी देखने को नहीं मिला। उस निश्छल उदार महामना नारी ने मेरे नन्हे- से हृदय के एक कोने में ऐसा स्थान बना लिया कि आज तक क्या, जीवन पर्यन्त भुला नहीं सकूँगा। मैं उसके इस निश्चल और निश्छल स्नेह का आजीवन ऋणी रहूँगा। यद्यपि मुझे उसकी कोई छवि आज 40 वर्ष व्यतीत होने के बाद भी स्मृति में नहीं है,किंतु उसके उस पवित्र कर्म ने जो मुझे ऋणी बनाया है,वह चिर स्मरणीय है। माता रोहिणी देवी जी तो आज इस असार संसार में नहीं हैं, किन्तु उनकी वह महान बेटी मुझे कभी भुलाए नहीं भूलेगी। ईश्वर उसे स्वस्थ रहते हुए दीर्घायु करें,यही
मेरी हार्दिक शुभ मनोकामना है। मैं उसका नाम नहीं जानता, रूप नहीं पहचानता ;किन्तु उसका काम जानता हूँ,जिसके कारण वह मेरे पावन हृदय में विराजमान देवी है।
शुभमस्तु !
22.02.2025●12.15 प०मा०
●●●
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें