रविवार, 10 मार्च 2024

मादक मलय वसंत [ दोहा ]

 88/2024

       

 [मन्मथ,मदन,मयूर,मलय,मादक]


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


                सब में एक

मन्मथ ने  मन  को मथा,मानस में हिलकोर।

मतवाली  तन  को  बना,करती काम विभोर।।

कुसुमाकर   कमनीय  है,जागा मन्मथ  जीव।

कुहू-कुहू  कोकिल  करे, विरहिन चाहे  पीव।।


मदन कहाँ  मद   के   बिना,यही सृष्टि - शृंगार।

दृश्य  जगत  के  सृजन का,  बना मूल  आधार।।

कान्हा  मोहन  मदन  तुम, योगेश्वर   घनश्याम।

राधाप्रिय   गोपाल   हो,  ब्रज  में  श्रेष्ठ    ललाम।।


मन - मयूर   मम   नाचता,जब आए    मधुमास।

कली-कली मुकुलित हुई,कवि का शुभ अनुप्रास।।

सुनकर    गर्जन    मेघ  की,  बोले बाग    मयूर।

मन  में  उठे   हिलोर - सी, हृदय हुलस  भरपूर।।


मलय - गंध  मनभावती, पावन सुरभि  हिलोर।

जहाँ -जहाँ  जाती  जिधर,  भर आनंद  विभोर।।

मलय-विटप का एक गुण,दे शीतलता  दान।

सद  सुगंध भी  बाँटता, सदगुण भरा निधान।।


 मादक  मधु  से प्रेम का, अलिदल है  पर्याय।

करे प्रतीक्षा रात -दिन,सुरभि बिना निरुपाय।।

मादक मद रस चू रहा,गजगामिनि पद चाल।

लगता  अवनी -  झील में, है  उन्मत्त मराल।।

                   एक में सब

मादक मलय समीर से,नाचे मदन मयूर।

मन्मथ  ले  अंगड़ाइयाँ,भर उमंग भरपूर।।


शुभमस्तु !


06.03.2024 ●7.15आ०मा०

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