095/2024
[मंजरियाँ,बौर,आम्र,कचनार,कनक]
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
सब में एक
तुलसी -बिरवा में खिलीं, मंजरियाँ पुरजोर।
आँगन में महका करें, भरती गेह हिलोर।।
मंजरियाँ नव आम की,करतीं हैं आहूत।
हे अलि दल रस चूस लो,हमसे मधुर प्रभूत।।
ऋतु आई मधुमास की,बौर लदे हर डाल।
अमराई में झूमते, अलि दल बने बिहाल।।
कली - कली मुकुलित हुई,आम रहे हैं बौर।
वासन्ती ऋतु आ गई,मंजु मधुप मद दौर।।
आम्र - कुंज में श्याम ने,झूला डाला एक।
राधा के सँग झूलते,कुंज बिहारी नेक।।
आम्र - मंजरी शाख पर,गूँज रहे पिक-बोल।
माधव हरषाए मगन, कानों में रस घोल।।
कलिका नव कचनार की,कोमल कांत अपार।
हे कामिनि! नित चंचले, उर से कांत उदार।।
चलो सखी बाहर चलें,फूल रहे कचनार।
फाग दिशाएँ गा रहीं, मचल उठा है मार।।
कनक भवन में राम का,रम्यक सुखद निवास।
नमन करें नित भक्त जन,मान हृदय के पास।।
मत मद में नर चूर हो,रहें कनक से दूर।
सदा सादगी ही भली, करे अहं को चूर।।
एक में सब
कनक आम्र कचनार सँग,महके मंजुल बौर।
मंजरियाँ मन भावतीं,गुंजित शाख सुभौंर।।
शुभमस्तु !
13.03.2024●7.45 आ०मा०
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