148/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
एक नहीं बहुतेरे रँग हैं,होली के इस साल।
कुछ गुजिया कुछ रँग गुलाल हैं, मतमंगे बेहाल ।।
जोगीरा सारा रा रा रा
किसका रंग जमे होली में,कौन जा रहा जेल।
किसके बाँट बटखरे किससे, कर बैठेंगे मेल।।
जोगीरा सारा रा रा रा
दिन में झंडा एक रंग का,सुबह और ही रंग।
बेपेंदी के लोटे लुढ़कें, चलें और के संग।।
जोगीरा सारा रा रा रा
जोड़ - तोड़ का खेल सियासत, जानकार का खेल।
कुर्सी देवी की चाहत है,मेल या कि फीमेल।।
जोगीरा सारा रा रा
घुटे हुए तिकड़म से अपनी,बना सकें शुभ गैल।
सिद्ध कर रहे पैसा दौलत, है हाथों का मैल।।
जोगीरा सारा रा रा रा
नहीं सियासत सबके वश की, खिलंदड़ों की जीत।
तिकड़म से ही हो पाती है,कुर्सी अपनी मीत।।
जोगीरा सारा रा रा रा
'शुभम्' कहें जोगीरा देशी,करना मत विश्वास।
नेता होता नहीं बाप का,करता नहीं उजास।।
जोगीरा सारा रा रा रा
शुभमस्तु !
23.03.2024●5.45प०मा०
●●●
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें