सोमवार, 25 मार्च 2024

रंगोत्सव होली [ दोहा गीतिका ]

 154/2024

              

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


फ़ागुन    है   मनभावना, होली  का हुड़दंग।

भँवरे    मंडराने   लगे,   बजा   रहे   हैं   चंग।।


होरी  से  धनिया  कहे,  आ जाओ भरतार।

हम  तुम   होली  खेल  लें, बरसें सारे   रंग।।


भौजी इसका राज क्या,कसी कंचुकी लाल।

लगता यौवन ने किया, इसको इतना तंग।।


कोकिल  बोले  बाग में,    कुहू -कुहू के  बोल।

विरहिन   को  भाता  नहीं,तप उठते हैं   अंग।।


पीली  चादर  ओढ़कर , निकली धरती  आज। 

महुआ  महके   बाग  में,  भरता मधुर   उमंग।।


सेमल  लिए   गुलाल  की,लाल पोटली   एक।

मुस्काता  है  रात -दिन, बहे  प्रेम  रस    गंग।।


पिचकारी   क्यों  मौन हो,बैठे छिपकर   गेह। 

'शुभम्'   कहें   मधुमास  में,घूमें मस्त मलंग।।


शुभमस्तु !


25.03.2024●9.15 आ०मा०


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