154/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
फ़ागुन है मनभावना, होली का हुड़दंग।
भँवरे मंडराने लगे, बजा रहे हैं चंग।।
होरी से धनिया कहे, आ जाओ भरतार।
हम तुम होली खेल लें, बरसें सारे रंग।।
भौजी इसका राज क्या,कसी कंचुकी लाल।
लगता यौवन ने किया, इसको इतना तंग।।
कोकिल बोले बाग में, कुहू -कुहू के बोल।
विरहिन को भाता नहीं,तप उठते हैं अंग।।
पीली चादर ओढ़कर , निकली धरती आज।
महुआ महके बाग में, भरता मधुर उमंग।।
सेमल लिए गुलाल की,लाल पोटली एक।
मुस्काता है रात -दिन, बहे प्रेम रस गंग।।
पिचकारी क्यों मौन हो,बैठे छिपकर गेह।
'शुभम्' कहें मधुमास में,घूमें मस्त मलंग।।
शुभमस्तु !
25.03.2024●9.15 आ०मा०
●●●
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें