शनिवार, 16 मार्च 2024

संस्कृतियों के विविध रंग [गीतिका ]

 91/2024

   

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


राम -  कृष्ण   का    देश   हमारा।

बहती    पावन    सुरसरि- धारा।।


संस्कृतियों  के   विविध   रंग    हैं,

सबने    मिलकर    इसे    सँवारा।


संघर्षों     से    कभी   न    थकते,

विश्व  -  गगन   में   चमका   तारा।


मिलजुल कर  विकास  हम करते,

चहुँ   विकास   ही    अपना  नारा।


सीमा    पर    हैं    रक्षक    सैनिक,

उन्हें     देश     है   सबसे    प्यारा।


सूरज   चाँद  गगन      में     चमकें,

फैलाते     हैं      नित      उजियारा।


'शुभम् '   हमारा     धर्म    यही   है ,

कभी   न  तन - मन  हिम्मत   हारा।


शुभमस्तु !


11.03.2024● 6.45आ०मा०

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