126/2024
[अमलतास,गुलमोहर,सेमल,महूक,मधुप]
सब में एक
अमलतास बौरा गया, गर्मी हुई जवान।
पगड़ी पीली बाँध कर, आया कृषक महान।।
अमलतास से कर रही, पुरवाई परिहास।
दूल्हे जैसा सज गया, किसे न आए रास।।
गुलमोहर के तरु तले, तितर-बितर हो फूल।
पहनाने भू को लगे, अपना लाल दुकूल।।
आँचल में भर लो सखी, गुलमोहर के फूल।
अरुण वर्ण है प्रेम का, हर्षित विटप समूल।।
यह जग सेमल फूल है,रस विहीन निस्सार।
दिन दस के व्यवहार में,कर मत इसे दुलार।।
आँखों में प्रियकर लगे,ज्यों सेमल का फूल।
लाल रंग में भ्रमित हो ,भूल न निहित उसूल।।
फागुन आया झूमकर,मुकुलित सुमन महूक।
मादक मलयानिल बहे,भूल न करना चूक।।
ऋतु वसंत सरसा रही, हैं महूक रसलीन।
भँवरे झूमें मत्त मद, मधु पी होते पीन।।
पाटल खिलते बाग में,मधुप करें गुंजार।
रसलोभी मनुहार से, लूट रहे रसधार।।
एकनिष्ठता प्रेम की, नहीं मधुप के पास।
छोड़ नहीं जाए कभी, रखें न ऐसी आस।।
एक में सब
अमलतास सेमल खिले,गुलमोहर भी लाल।
मादक मधुप महूक पर,ठोक रहे हैं ताल।।
शुभमस्तु !
20.03.2024● 7.45आ०मा०
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