94/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
-1-
फागुन मास धमाल करै अब,
भूतल पै पतझार भयौ है।
शीत विलाय गयौ कितकूँ झरि,
पीपल शीशम गात नयौ है।।
होठ गुलाल भए तरु के बहु,
पाटल पै अलि गूँजि रह्यौ है।
पीत पराग झरै धरणी नित,
पूरब में रवि तेज उग्यौ है।।
-2-
फूलि रही सरसों सब खेतनु,
कोकिल कूकि रही अमराई।
झूलि रहे अलि डारनु पै बहु,
नारिनु गात चढ़ी गरमाई।।
काम उछाल भरै मन में अति,
देखति पीव गई शरमाई।
ढोलक थाप परै कर की जब,
हूल उसास भरै भरमाई।।
-3-
रंग -गुलाल धरे कर में निज,
गेहनु से निकसी ब्रजबाला।
जौ कहुँ श्याम मिलें पथ में अब,
लाल करें मुख डारि दुशाला।।
औचक भेंट भई मग में जब,
लागि गयौ तिय सोचनु ताला।
बाँहनु में भरि चूमि लई इत,
आइ गए उत तें ब्रजग्वाला।।
-4-
माधव मंगल मोद भरे नित,
फागुन चैत विशाख सुहाने।
हैं ऋतुराज छहों ऋतु के वह,
संवत के लगि आदि मुहाने।।
देह धरे तरु - बेल चराचर,
चीर नए अलि गावत गाने।
कोकिल कूकि रही अमुआ तरु,
पूछति तीय रही मधु माने।।
-5-
ले ढप-ढोल चले ब्रज-बालक,
खेलन को रँग से मिलि होली।
हाथनु रंग - गुलाल भरे युव,
भाभिनु सों करते जु ठिठोली।।
घूमत -झूमत नाचि रहे जब,
फेंकि गुबार रँगी तिय -चोली।
काजर आँजि दयौ दृग भाभिनु,
पोति महावरि पैरनु कोली।।
*कोली=सँकरी गली।
शुभमस्तु !
12.03.2024●1.00प०मा०
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