सोमवार, 18 मार्च 2024

शुभम् कहें जोगीरा:8 [जोगीरा ]

 104/2024

            


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


रात-रात भर कविजन करते,काव्य समागम नाम।

हा हा  ही ही  भरे  चुटकुले, भरे लिफाफे दाम।।

जोगीरा सारा रा रा रा


कविता  से साहित्य विदा है,कवि हैं मात्र हँसोड़।

तुकबंदी   अश्लील  करें   वे,  देते शब्द   मरोड़।।

जोगीरा सारा रा रा रा


कवयित्री   कम  नहीं  किसी से, रूपगर्विता  देह।

परफ़्यूमी  परिपुष्ट  परी-सी, पति से नहीं  सनेह।।

जोगीरा सारा रा रा रा


क्लिष्ट काव्य के प्रेत विचरते,कवि सम्मेलन  बीच।

शब्दकोश  लेकर  ही   बैठें,तब हों अर्थ    नगीच।।

जोगीरा सारा रा रा रा


तेल तालियों का पड़ना भी,हर कवि  को अनिवार्य।

गाड़ी  बढ़ती  नहीं इंच भर, वाह वाह सिर  धार्य।।

जोगीरा सारा रा रा रा


कुछ कवि कारा समझ रहे हैं,छंद ज्ञान को बोझ।

वे  उड़ते  उन्मुक्त   गगन  में, थामे ग्रीवा   ओझ।।

जोगीरा सारा रा रा रा


'शुभम्' कहें  जोगीरा कवि का, कविता करें भदेश।

छंद  और  तुक  गए भाड़  में,बदला है   परिवेश।।

जोगीरा सारा रा रा रा


शुभमस्तु !

17.03.2024 ●10.00आ०मा०

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