83/2023
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
अँगुली केवल कनिष्ठिका
पर्याप्त थी
गिरि गोवर्द्धन
उठाने के लिए
कृष्ण की।
दस की दसों
हाथ की अंगुलियाँ
काम आ गईं
एक राधिका के लिए
कृष्ण की।
प्रेम भारी है
किसी गिरि से
भी बड़ा
निभाने के लिए
भारी बंसरी कृष्ण की।
देह तो फूल है
बहुत हलका पुलक
हवा में उठे
फूल - सा,
भार मन का
भारी बड़ा है 'शुभम्'
सजती बजती रही
वंशिका कृष्ण की।
शुभमस्तु !
04.03.2024●2.15प०मा०
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