मंगलवार, 5 मार्च 2024

खटिया [बाल गीतिका]

 85/2024

                   


© शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


बाबा जी    की    टूटी   खटिया।

चूँ -चूँ चर - मर  करती खटिया।।


बाबा जी   जब   लेटें   उस पर,

डग - मग पूरी हिलती  खटिया।


खर्राटे      भर      सोते    बाबा,

गहरी  नींद    सुलाती   खटिया।


एक   दिवस  मैंने     अजमाया,

हमको  झूला  लगती   खटिया।


बान  कहीं   अधबान   नहीं   है,

जालीदार     झंझरी    खटिया।


सिर पाटी पर   कमर   धरा पर,

पाँव  अधर   उटकाती  खटिया।


गद्दा    नहीं    लगाते    तकिया,

गहरी   नींद   सुलाती   खटिया।


नींद  न होती 'शुभम्'    सेज  में,

मन का   चैन  जताती   खटिया।


शुभमस्तु !


04.03.2024● 8.15प०मा०

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