111/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
फ़ागुन में वन बाग में, शीतल बहे बयार।
कली-कली मुकुलित हुई,छाने लगा खुमार।।
पीपल शीशम नीम के, पीले पल्लव नित्य,
धरती पर गिरने लगे, अब होता पतझार।।
अमराई में कूकती, कोकिल मीठे बोल,
विरहिन की पीड़ा जगी, जाग उठा है प्यार।
मधुपाई अलि झूमते, फुलवारी के पास,
चंचल तितली नाचती,पीती मधु रस धार।।
कोंपल लाल गुलाल - सी,लगती तरु मुस्कान,
बूढ़े बरगद शिंशुपा , कभी न मानें हार।
ढप ढोलक बजने लगे, मचल रही है चंग,
मस्त मँजीरा मोद में, मतवाली खटतार।
'शुभम्' होलिका आ गई, ब्रज में बढ़ी उमंग,
ले पिचकारी झूमते , ग्वाल बाल हर द्वार।
शुभमस्तु !
18.03.2024● 7.15 आ०मा०
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