118/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
पकी फसल पर
ओले गिरते
बैठा दुखी किसान।
हाथ जोड़कर
प्रभु से करता
हृदय-वेदना व्यक्त।
हाय विधाता
क्या कर डाला
उर दुख से संसिक्त।।
कैसे हो अब
ब्याह सुता का
करना कन्यादान।
बिछी पड़ी है
फसल जमीं पर
एक न दाना शेष।
कौन कर्ज दे
मुझ गरीब को
धरूँ भिखारी वेष।।
कैसे क्यों मैं
मुख दिखलाऊँ
कैसे करूँ निदान।
मुझ गरीब का
यही सहारा
खेती - पाती आज।
कर पाते हैं
हम किसान सब
खेती से हर काज।।
छप्पर फाड़ न
हमको मिलता
बचनी कैसे जान।
शुभमस्तु !
19.03.2024● 6.30आ०मा०
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