गुरुवार, 21 मार्च 2024

बैठा दुखी किसान [ गीत ]

 118/2024

           

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


पकी फसल पर

ओले गिरते

बैठा  दुखी किसान।


हाथ जोड़कर

प्रभु से करता

हृदय-वेदना व्यक्त।

हाय विधाता

क्या कर डाला

उर दुख से संसिक्त।।


कैसे हो अब

ब्याह सुता का

करना कन्यादान।


बिछी पड़ी है

फसल जमीं पर

एक न दाना शेष।

कौन कर्ज दे

मुझ गरीब को

धरूँ भिखारी वेष।।


कैसे क्यों मैं

मुख दिखलाऊँ

कैसे करूँ निदान।


मुझ गरीब का

यही सहारा

खेती - पाती आज।

कर पाते हैं

हम किसान सब

खेती से हर काज।।


छप्पर फाड़ न

हमको मिलता

बचनी कैसे जान।


शुभमस्तु !


19.03.2024● 6.30आ०मा०

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