155/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
तरह - तरह के
रंग जगत के
सबका अपना रंग।
कोई नीला
लाल गुलाबी
काला पीला सेत।
हरा बैंजनी
धूसर कोई
कहीं रंग समवेत।।
कोई भी रँग
अपनाएं प्रिय
हो न रंग में भंग।
रंग न होते
यदि दुनिया में
हो जाता बदहाल।
रंग हमारे
अभिज्ञान हैं
रंगों की ही ताल।।
जिसका कोई
रंग नहीं है
नहीं किसी के संग।
होली दीवाली
का अपना
अलग -अलग किरदार।
होली में रँग
बरसे मधुमय
उधर दियों का प्यार।।
एक रंग
बदरंग सभी का
देख न होना दंग।
रंगों में बँट
बिखर न जाएँ
होली का संदेश।
धर्म जाति
संस्कृतियाँ जुड़कर
हो महान ये देश।।
रहें सभी मिल
भारतवासी
करें न जन को तंग।
शुभमस्तु !
26.03.2024●8.30आ०मा०
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