03/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
कीचड़ की होली के दिन वे,अब आते हैं याद।
गंगा जैसे मन थे उनके, अब है उनमें गाद।।
जोगीरा सारा रा रा रा
गली - गली में सीटी बजती,चले प्यार की बाढ़।
पहले भी था प्यार दूध -सा,अब सपरेटा गाढ़।।
जोगीरा सारा रा रा रा
मात -पिता को आँख दिखावें, संतति हिस्सेदार।
सास-ससुर लगते अति प्यारे,बढ़ी घरों में रार।।
जोगीरा सारा रा रा रा
भाई का दुश्मन है भाई, बीच खड़ी दीवार।
कर्ता दुखी हुआ ऊपर का,मान गया है हार।।
जोगीरा सारा रा रा रा
नारी की आरी बन नारी, रखती माँग दहेज।
पुत्रवधू को ताने मारे, खबर सनसनीख़ेज़।।
जोगीरा सारा रा रा रा
सहने की क्षमता न बची है,बढ़ते रोज फ़साद।
खून तुच्छ बातों में होते,कोलाहल का नाद।।
जोगीरा सारा रा रा रा
'शुभम् ' कहें जोगीरा समझे,कलयुग चले कुचाल।
स्वार्थ शहद - सा मीठा लगता,होता नित्य बवाल।।
जोगीरा सारा रा रा रा
शुभमस्तु !
16.03.2024●9.00प०मा०
●●●
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें