सोमवार, 18 मार्च 2024

शुभम् कहें जोगीरा :15 [जोगीरा ]

 115/2024

         


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


चौरासी लख यौनि घूमती,जीव बहुरिया नेक।

आई जग में रँग रस पा ले,रहे न बनके  भेक।।

जोगीरा सारा रा रा रा


सदा  काम रस में ही भूली, फूली - फूली     घूम।

रँग ले तन मन रँग गुलाल से,भँवरे का मुख चूम।।

जोगीरा सारा रा रा रा


अपने - अपने रस के लोभी,सभी मीच के भोग।

पल न एक भी अधिक मिलेगा,खा जाएगा रोग।।

जोगीरा सारा रा रा रा


नर  मादा  का  भेद न  जानें,एक जीव  का  रूप।

भले  बुरे  जो कर्म करे जन,फटके उसको सूप।।

जोगीरा सारा रा रा रा


जाति-पाँति में जीवन खोया,लघु महान का बोध।

परदे में  दुष्कर्म  करे  तो, करे  न उनका  शोध।।

जोगीरा सारा रा रा रा


मिट्ठू  मिया बड़े ही बनते ,बन सबके  सिरमौर।

सदा  तर्जनी  की  औरों पर,  जीता रणथंभौर।।

जोगीरा सारा रा रा रा


'शुभम्'  कहें  जोगीरा साँचे,खुले एक   दिन   पोल।

करनी कथनी अलग मिलीं सब,बात-बात में झोल।।

जोगीरा सारा रा रा रा


शुभमस्तु !


18.03.2024●1.30प०मा०

                  ●●●

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...