सोमवार, 4 मार्च 2024

महा रात्रि शिव की आई [गीतिका ]

 81/2024

        

 ©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


छाई   अद्भुत    विमल       छटा।

कुहरे    का      आतंक      घटा।।


फूल  -   फूल     पर     भँवरे   हैं,

तरु  लतिका    के    पास    सटा।


महा     रात्रि    शिव   की    आई,

प्रसरित हर   की     सघन   जटा।


नमः - नमः     शिव- भक्त     जपें,

हमने    भी      शिव -नाम     रटा।


ऋतु       वसंत    की    शुभकारी,

पतझर     से  भू   -  अंक     पटा।


नीलकंठ           नंदी         सेवित, 

लाते   वन      से     खोज     गटा।


'शुभम्' जपें  हम  जय शिव    की,

जपते    ही    शिव    क्लेश  कटा।


*गटा =कंदमूल।

शुभमस्तु !



04.03.2014 ●6.45आ०मा०

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...