मंगलवार, 8 अक्टूबर 2019

सरहद पर रावण खिसियाया [ गीत ]




सरहद पर रावण खिसियाया,
तुम व्यस्त   यहाँ अगवानी में।
थैली - माला   लिए  खड़े हो ,
मक्खन  सँग    रजधानी  में।।

एक   ओर  प्लास्टिकबन्दी है,
उधर   सुलगता   है    बारूद।
इधर  जलाते  तुम पुतलों को,
बाँध   पट्टियाँ   आँखें   मूँद।।
पता  नहीं  है   तुमको शायद,
दुश्मन    कितने   पानी   में।
सरहद पर रावण.....

लाख    करोड़ों  पौधे    रोपे,
पर   मुँह  फेर  नहीं    देखा।
पर्यावरण  के   गीत   गा रहे,
अम्बर    में    काली  रेखा।।
औरों   को   उपदेश  दे  रहे,
समझाओ   यह   मानी   मैं।
सरहद पर रावण....

नेताओं    की   पूँछ थामकर,
डूब   स्वयं    भी     जाओगे।
करनी  जिनकी  झूठी  सारी,
कथनी  में  क्या     पाओगे??
आ मत  जाना  इनके  झाँसे,
बात   मधुर    बचकानी   में।
सरहद  पर रावण .....

सत्य  बात  कह  दो तो अंधे -
भक्तों  को  लगती   है  चोट।
जाति  धर्म में   बाँट देश को,
रिश्वत   में   बँटते   हैं  नोट।।
राजनीति   वोटों   की  गंदी,
लगती  आग    जवानी   में।
सरहद  पर रावण....

अनपढ़  कृषक  ठगे  जाते हैं,
जीरा  खिला    ऊँट  के  पेट।
हुआ 'शुभम 'उद्धार  देश का ,
खुले  तरक़्क़ी  के  सब गेट।।
अंतर आया  नहीं तनिक भी,
उनके    छप्पर -  छानी    में।
सरहद पर रावण ....

💐 शुभमस्तु !
✍ रचयिता ©
🍏 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम '

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08.10.2019◆6.45 अपराह्न।

विजयदशमी पर्व पर: सीमा पर रावण खड़ा [ कुण्डलिया ]




गीता   का   अमृत    वचन ,
सदा   सत्य     की    जीत।
सत  से      ही    संसार  है,
सत    ही     मानव -  मीत।
सत    ही    मानव   -  मीत,
असत  की   सदा  पराजय।
पाप    तमस      का   रूप,
पुण्य की होती   जय -जय।।
अशुभ     गया     है    हार,
'शुभम'   सत - अमृत पीता।
दिया      कृष्ण      उपदेश,
कह   रही   भारत -गीता।।1।

पर्व      दशहरा    आ   गया ,
हरो     काम,   मद,    क्रोध।
लोभ , मोह ,मत्सर  , अहम,
आलस ,     हिंसा,      बोध।।
आलस,       हिंसा ,     बोध,
नहीं     करनी      है    चोरी।
अपनी        पत्नी       छोड़ ,
नारि    सब    माता   तोरी।।
बहनों    का    शुभ     भाव ,
हृदय   में     रखना    गहरा।
पुतले    ही      मत    जला,
'शुभम' तब   पर्व दशहरा।।2।

लीला     करते    राम   की,
राम     हुए     बस     एक।
क्या    सीखा    है  राम  से,
रावण       बसे     अनेक।।
रावण       बसे       अनेक ,
मात्र       संवाद       बोलते।
आते       बीच        समाज,
ज़हर  ही   सदा      घोलते।।
राम -  लखन    बन   हीन-
रहे , क्या   काला  - पीला ?
'शुभम'     पीटना      लीक ,
सबक लो   करके  लीला।।3।

रावण    के    पुतले    जला,
आतिशबाजी             फूँक।
बढ़ा     प्रदूषण      देश   में ,
कैसी        तेरी         हूक ??
कैसी        तेरी          हूक,
पटाखे   जला -  जला  कर ।
काटे          अपने        पैर ,
कुल्हाड़ी  चला - चला  कर।।
काले          कर्कट       रोग ,
भयंकर    हो      जाते  व्रण।
मन     का    कचरा    फूँक,
जलाता   पुतला  रावण !!4।

सीमा   पर     रावण   खड़ा,
पहले       उसको        देख।
रक्षा   कर     ले   देश    की,
मिटा     शत्रु     की     रेख।।
मिटा     शत्रु      की     रेख ,
'शुभम'     होगी     दीवाली।
चीनी    में    विष        घोल ,
पड़ौसी     देता       ताली।।
टेढ़ी       करता        आँख,
बना  दे     उसका    कीमा।
पुतलों   को    मत     पोत,
सुरक्षित  कर ले  सीमा ।।5।

💐शुभमस्तु !!
✍रचयिता  ©
🚩 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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08.10.2019
विजयदशमी  सम्वत :2076 विक्रमी.
10.50 पूर्वाह्न।

सोमवार, 7 अक्टूबर 2019

नवदुर्गा झाँकियाँ [ बालगीत ]




सजीं मंच  पर  सुंदर झाँकी।
नौ   रूपों   में दुर्गा  माँ  की।।

शैलसुता  माँ  वृषभ सवारी।
ब्रह्मचारिणी   तपती न्यारी।।
चंद्रघंटिका - महिमा बाँकी।
सजी मंच पर .....

चौथी   हैं    कूष्मांडा  माता।
आदिस्वरूपा सृष्टि विधाता।।
सिंहवाहिनी   मनहर  कांती।
सजी मंच पर .....

मातु     पंचमी     स्कंदमाता।
ज्ञानी   बनता जो नर ध्याता।।
हैं    कार्तिकेय अंक में माँ की।
सजी मंच पर .....

चार   फ़लों   को   देने वाली।
कात्यायनि माँ बड़ी निराली।।
सिंह विराजति शिवम सुहाती
सजी मंच पर .....

सर्व   सिद्धियाँ    देने  वाली।
कालरात्रि  माँ खप्पर वाली।।
गर्दभ पर शोभित माँ बाँकी।
सजी मंच पर .....

महागौरी    हैं   अष्टम  शक्ति।
वृष आरूढ़ा की  कर भक्ति।।
दृष्टि न देख -देख कर छाकी।
सजी मंच पर ....

सिद्धिदात्री    नौवीं    माता।
कमलासन ही उन्हें सुहाता।।
सिंहसवारी   ही  है  माँ की।
सजी  मंच पर....

💐 शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
🚩 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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 07अक्टूबर2019.महानवमी
3.15 अपराह्न।

रावणीय प्लास्टिक बनाम प्लास्टिकीय रावण [ विधा : सायली ]


♾●★●♾●★●♾●★◆

पॉलीथिन
दूर        करो
ख़ूब फोड़ो पटाखे ,
इससे   सुधरेगा 
पर्यावरण ?

कम्पनियाँ
जिंदा   रहीं ,
प्रदूषण का रावण
मरेगा   नहीं
प्लास्टिक।

काम 
सब  विरोधाभासी 
करता  है    प्रशासन ,
जिंदा    हैं
जनक ।

न 
रहेगा  बाँस
न बजेगी बाँसुरी,
बाँस - वन
मिटाओ।

निरीह
दुकानदारों को
व्यर्थ    में       मत 
सता         मारो 
उबारो।

विकल्प 
पहले            हो ,
संकल्प    बाद      में
प्लास्टिक - पलायन 
से।

पटाख़े
ख़ूब  फोड़ो
सारी - सारी रात,
सुधरेगा  इससे
पड़ौसी।

चीनी
बिना मिठास
आएगी   नहीं  'शुभम',
ख़ूब  ख़रीदो
आतिशबाजियां।

आया 
विजयदशमी पर्व,
पुतलों को  जलाओ,
कालिख़    को
छिपाओ।

रावण 
जिंदा  है ,
जिंदा  हैं  राम-
जब  हमारे 
यहाँ।

रावण 
गली -गली 
सरेराह घूमते हैं,
राम कहाँ 
इतने ?

लंका 
सोने   की ,
इतना  बुरा  सोना ,
फिर  क्यों 
कामना ?

आग 
लगा दी
सोने  की  लंका ,
जल उठी 
प्रलयंकारी।

आराम 
नहीं   है 
रामों  को  कभी,
रावण भक्तों
 से।
( 'रावण - भक्तों  से ' अथवा 'रावण , भक्तों से ' भी )

रक्तबीज
रावण   का 
बोया   है   बीज ,
कितना   भी
जलाइए!

साधन
मनोरंजन   का
बन   गया   रावण,
बच्चों   का 
खिलौना ।

खेलते 
बड़े  भी
जलाकर  रावण,
खुश   होते
सभी।

राख
रावण  के
पुतलों   की  बची,
अगले   वर्ष
पुनरुद्भवन।

💐 शुभमस्तु  !
✍रचयिता ©
⛳ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम '

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06अक्टूबर 2019 , 12.15 अपराह्न।

रविवार, 6 अक्टूबर 2019

बद अच्छा बदनाम से [ दोहा ]



लगा     पटाखे     देह    में,
बाण          मारते      राम।
रावण  भी     मरना   नहीं,
अगर  अमर    हैं  राम।।1।

नाक     काटना   बहन  की,
नहीं    नेक     था     काम।
बदला      लेना    था   मुझे,
हरी     जानकी      राम।।2।

सीता    पत्नी       आपकी,
हो   जाती     यदि     वाम।
छुआ  नहीं   तन - रोम भी,
सत्य    तथ्य   हे    राम!!3।

चरितहीन    मुझको    कहा,
बहुत      किया      बदनाम।
घर  - घर  रावण   आज   हैं,
क्या  कहते    हो  राम??4।

गली  -   गली    रावण  बसे,
उर -  उर     छाया     काम।
कलियुग   में   आचार   अब,
शेष    कहाँ     हे    राम !!5।

घर  का    भेदी    जन्म   ले ,
नहीं    किसी    भी     धाम।
कलियुग  में  भी    पूज्यवर,
नम्र      निवेदन    राम ।।6।

अरबों   -  खरबों   की  करें,
आतिशबाजी            झाम।
पर्यावरण    को    रो     रहे-
क्यों ,  बतलाओ    राम।।7।

वर्षों   जो  तप     से    जला,
उसे  आग     क्या      घाम?
रावण  भी      जलना   नहीं ,
जब  तक  भू  पर  राम ।।8।

जला   रहे     पुतले     सभी,
कस्बा        नगर      तमाम।
धुआँ     विषैला   भर    रहे ,
फल    बतलाओ    राम।।9।

वर्ष    -  वर्ष     जिंदा    रहे, 
जले     न     हड्डी      चाम।
रावण  भी  है    नित अमर,
जब  तक जिंदा  राम।।10।

बद   अच्छा     बदनाम   से,
तपता     आठों         याम।
हनन  हुआ   रावण -  चरित,
'शुभम '  बन  गए  राम।।11।


💐 शुभमस्तु  !!
✍रचयिता ©
🏹 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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05अक्टूबर 2019◆ 5.20 अपराह्न।

ग़ज़ल




पार     हो     गए    तो पार,
अन्यथा     डूबे    मँझधार।

हिम्मत      है     हौसला भी,
नहीं    मानी  है  मगर   हार।

खटखटाता     ही  रहूँगा मैं,
जब  तक खुलेगा नहीं द्वार।

बिना   समझे    कहता  नहीं,
हर शब्द है अनमोल उपहार।

शागिर्द  बन जाएगा   'शुभम',
खुल ही जायेगा    वह  द्वार।।

💐शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
🍋 डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम'

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29.09.2019◆11.30 पूर्वाह्न।

शनिवार, 5 अक्टूबर 2019

जेब में फटा रुमाल [ मुक्तक ]




सत्य        कहना         गुनाह   है,
झूठ    को   अब    तो   पनाह   है,
फिर   भी   सच    को   जो अपनाए,
उसकी     काँटों      में     राह   है।1।

धर्म  की  आड़ में   चाहे  कुछ करो,
कपड़े   रँगो     या      तिजोरी  भरो,
धर्म के  ख़िलाफ़   जो  बोला कभी,
तो जिंदा के जिंदा  दफ़न हो रहो।2।

अपनी   -   अपनी          गाते हैं,
औरों         की         झुठलाते  हैं,
जो     हैं      छोटे       दिल   वाले,
ख़ुद    को     बड़ा     जताते  हैं।3।

भेड़    के    पीछे     भेड़ -  कतार,
आगे     चले        ईश्वर -  अवतार,
सोच   -  समझ   सब    छींके पर,
अगला   जाने     जीत    या  हार।4।

वही     नागनाथ    वही साँपनाथ,
सब    अंधे   झुकाते   अपना माथ,
सब     मतलब      के   बन्दे    हैं,
वर्ना    कौन  है   किसके  साथ।5।

बोतलें  हैं एक -सी लेबिल अलग - अलग,
दिखाने को  दिखते   सब अलग - थलग,
एक  ही   मछली  कभी  तू खा कभी मैं,
एक ही  जाम से पीना है अलग-अलग।6।

टी.आर.पी.     का     धमाल  है,
वी. आई. पी.    का   कमाल   है,
उससे    ऊँची     रहे     पगड़ी मेरी,
भले  ही जेब में  फटा रुमाल है।7।

ज़र - ज़र      शरीर  फिर  भी चंगे हैं?
कहते      हैं      लोग    जिन्हें    गंदे हैं,
इंसान  से   बन    जाएँ    जो जानवर,
 करते   हैं    यहाँ    वही   दंगे हैं।8।

सफेद -  पोस   कितना चंगा है
दरअसल    वो   सियार  रंगा  है,
हक़ीक़त    इसकी     जानते सारे,
इसके  दामन   में   सिर्फ दंगा है।9।

धर्म  सभी भले,  अनुयायी नहीं,
जो  झगड़े करें,  वे   न्यायी नहीं ,
ऊँचे -  ऊँचे झंडे  हैं सिर्फ़ अहं के,
धर्म क्या है ,जहाँ भाई  भाई नहीं।10।

💐 शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
🍃 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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04अक्टूबर2019 ★8.15 अपराह्न।

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...