रविवार, 7 सितंबर 2025

सहजीवन का एक निदर्शन [ नवगीत ]

 536/2025


    


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


सह जीवन

का एक निदर्शन

हमने पाया आज।


कैसे मानव

मिल जुलकर रह

जिए जा रहा जीवन

सबका सबको

साथ मिला तो

फटी न कोई सीवन

फिर भी सबने

एक साथ मिल

रखा मनुज सिर ताज।


श्वान मित्र के साथ

नित्य का

उसका रहना खाना

भेदभाव से

दूर रखे यह

भाषक का रह जाना

कैसे दोनों

एक साथ हैं

बना हुआ है राज।


बाधक नहीं

श्वान मानव के

वफ़ादार बन मित्र

छिड़क रहा है

नित जीवन में

प्रेम - साथ के चित्र

जीवन ही 

उसको  कहते हैं

चलें मिलाकर साज।


शुभमस्तु !


07.09.2025●12.00 मध्याह्न

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