गुरुवार, 11 सितंबर 2025

चारों ओर आग ही आग [ अतुकांतिका ]

 551/2025


    

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


आग चारों ओर लगी है

देश को बचाना है,

बारूद का ढेर 

बैठा हुआ देश पर

ईश्वर ही बचाए इसे।


कब सुलग उठेगी आग

कोई नहीं जानता

देश में ही तो बैठे हुए हैं

आग लगाने वाले

आस्तीन के साँप।


आग लगाने का कोई  

 उचित कारण नहीं होगा

आग लगाने के लिए

बहाने भर की प्रतीक्षा है।


कभी वोट चोरी

कभी भ्रष्टाचार के बहाने

ढूंढ़े जा रहे हैं

वे छेद वे मुहाने,

देश जाए भाड़ में

उन्हें अपने पराँठे

सेंकने सिंकवाने।


सत्ता पाने की हवस

कितना नीचे गिरा देगी,

कल्पना से परे हैं,

देख लो

पड़ौस में उझककर

पाकिस्तान बंगला देश

नेपाल में।


कितने प्रधानमंत्री

और राष्ट्राध्यक्ष

रातों- रात 

पलायन कर गए,

अभी भी कर रहे हैं,

जान है तो जहान है

अन्यथा जहन्नुम का

खुला हुआ मुहांन है।


11.09.2025●2.30 प०मा०

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