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©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
क्यों होना बदनाम,यदि हों अच्छे कर्म तो।
चमके कनक सुधाम, पारस छूता लौह को।।
यह संसार विराट, सूरज का साम्राज्य है।
करनी उसे न बाट,वह होगा बदनाम क्यों??
हो जाता बदनाम, बुरे कर्म से आदमी।
सारा जगत प्रणाम,करता पाँचों तत्त्व को।।
न हो नाम बदनाम, आओ वह करनी करें।
नाम हुआ है राम, दशरथ-सुत का कर्म से।।
प्रियता मिली समूल, कैकेई की धूल में।
बड़ी हो गई भूल, नाम हुआ बदनाम भी।।
शिव शंकर का भक्त,रावण यद्यपि वीर था।
भले गहन अनुरक्त,हुआ नाम बदनाम वह।।
फिर भी है बदनाम,निशिकर रजनीकांत है।
दाग लगा मुख श्याम,दुष्चरित्र के दाग से।।
भरे हुए है नीर,सागर सब संसार का।
पिए न जल खग कीर,खारीपन बदनाम है।।
पर चरित्र बदनाम, यद्यपि धन पर्याप्त हो।
सरे न कोई काम,जीवन उसका है वृथा।।
लगे न कोई दाग, नारी नाम चरित्र का।
खुलें तिया के भाग,नाम न हो बदनाम तो।।
रखना पूरा ध्यान, करनी और चरित्र का।
मिले पूर्ण सम्मान,नहीं इन्हें बदनाम कर।।
शुभमस्तु !
11.09.2025●5.30आ०मा०
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