554/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
रात -रात भर
परखा तेरा
भौं -भौं का भौकाल।
बहुत गलत है
कुत्सा कहना
कुत्ता भी अपमान
वाक़्-सिद्धि
पाई है तुमने
तुम मानव की शान
मुझको कहना है
अब तुमको
'वाक़् -सिद्ध' सौ साल।
चोरों से रक्षा
तुम करते
जागरूक ही करना
उत्तम है
संदेश तुम्हारा
सन्नाटे को भरना
स्वर से स्वर का
संगम होता
मिली वाक़् से ताल।
'वाक़् -सिद्ध' की
ऊँची पदवी
देता रचनाकार
तुम भी याद
रखोगे कवि को
एक अकिंचन प्यार
'शुभम्' न भूले
भौं -भौं भोंकन
तू ही एक मिशाल।
शुभमस्तु !
14.09.2025●12.45 आ०मा०(रात्रि)
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