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[हिंदी,भाषा,बोली,साहित्य,प्रयोग]
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
सब में एक
हिंदी अपना ज्ञान है, हिंदी ही सम्मान।
हिंदी के हम भक्त हैं, हिंदी ही प्रज्ञान।।
हिंदी भी यह जानती, कौन बड़ा अनुरक्त।
रचना हिंदी में करे, निज भाषा का भक्त।।
हिंदी भाषा के लिए, सहज समर्पण धर्म।
'शुभम्' करे दिन- रात ये,अपना पावन कर्म।।
माँ की घुट्टी में मिली, भाषा हिंदी एक।
नेह करें निज देश से,भक्ति सहित सविवेक।।
बोली उपभाषा कहें, ब्रजभाषा उत्कृष्ट।
मिश्री-सी मीठी लगे, मधुर भाव से पुष्ट।।
बोली में यदि प्रेम हो, मिले प्रेम सम्मान।
वचन मधुर सच बोलिए,जैसे सुखद विहान।।
हिंदी का साहित्य हो, जितना ही समृद्ध।
'शुभम्' बने निज देश का,रचनाकार सु-सिद्ध।।
कला हिंद साहित्य से,जिसे न तृण भर नेह।
नहीं नागरिक श्रेष्ठ वह,समझ लीजिए खेह।।
करता नव्य प्रयोग मैं,हिंदी में प्रति वार।
नए-नए नित शोध हों,विविधा का आगार।।
दैनिक बोली में करें, हिंदी सदा प्रयोग।
निज भाषा समृद्ध हो, मान करें सब लोग।।
एक में सब
बोली है साहित्य की,हिंदी भाषा नेक।
कर प्रयोग इसका सभी,आश्रय लें सविवेक।।
शुभमस्तु !
14.09.2025●8.00 आरोहणम मार्तण्डस्य।
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