547/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
हरे-हरे पेड़ खड़े
खेतों में हरियाली
दूर -दूर हैं मकान
रौनक मनभाई है
देख -देख छा गई
गाँव की यह प्राकृतिक छटा।
कहीं बँधे गाय बैल
आते -जाते लोग सभी
शांति का विस्तार है,
बैलगाड़ी हरे बाग
देखते ही बनते हैं।
व्यस्त सभी जन यहाँ
काम में निमग्न बड़े
खेलते हैं बाल वृंद
मस्ती का आलम है।
दूर हैं पहाड़ खड़े
वृक्ष कुछ छोटे बड़े
घास उगी हरी- हरी
मेड़ों पर ज्यों मखमली।
धन्य गाँव , धन्य लोग
कलरव करें खग वृंद
सुंदर स्वच्छ हैं आवास
कितना ही जो देखें आँखें
गाँव की यह प्राकृतिक छटा
तृप्तता न लेश भर।
शुभमस्तु
10.09.2025●5.00आ०मा०
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