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©शब्दकार
डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्'
खेल रहे हैं मानव-छौने।
नए आधुनिक हुए खिलौने।।
अब न झुनझुना बजता कोई।
इनके लिए न आँख भिगोई।।
लगते अब गुब्बारे बौने।
नए आधुनिक हुए खिलौने।।
फिरकी नहीं फिराते बच्चे।
छोटी - बड़ी उम्र के कच्चे।।
पड़े किसी घर के वे कोने।
नए आधुनिक हुए खिलौने।।
नहीं खेलता कंचा कोई।
पड़े हुए वे व्यर्थ रसोई।।
दे दो तो वे लगते रोने।
नए आधुनिक हुए खिलौने।।
मोबाइल जब से घर आया।
उसने सबको नाच नचाया।।
बिके झुनझुने औने -पौने।
नए आधुनिक हुए खिलौने।।
'शुभम् ' समय की चाल निराली।
घर का बालक एक न खाली।।
मस्त खेल में बनकर मौने।
नए आधुनिक हुए खिलौने।।
शुभमस्तु !
09.09.2025●8.45आ०मा०
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