543/2025
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डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
श्रेष्ठ वही जन जो अनुरागी।
मिले साथ हों हम बड़भागी।।
राग बिना अनुराग न आए।
मानव में समीपता लाए।।
राग मात्र भौतिकता लाता।
अनुरागी ही थिरता पाता।।
प्रभु चरणों में जो अनुरागी।
वहीं प्रबल मानवता जागी।।
भौतिक सुख में राग सुवासा।
ईश्वर में अनुराग विकासा।।
अनुरागी जो नर हैं होते।
नहीं जगत के बोझे ढोते।।
राधेश्याम चरण जो ध्याये।
अनुरागी सदभक्त कहाए।।
जन्म-जन्म अनुराग न जाता।
मानुष वही परम गति पाता।।
सियाराम पद का अनुरागी।
भौतिक सुख का होता त्यागी।।
जगत राग है अचिर न कोई।
करे भाग्यलिपि उसकी सोई।।
'शुभम्' शारदा-पद अनुरागी।
छठवीं इन्द्रिय अपनी जागी।।
विघ्नेश्वर को शीश झुकाए।
अंतर पट में नित चितलाए।।
अनुरागी मन धन्य हमारा।
स्यात् मिलेगा सुथिर किनारा।।
जन्म - जन्म प्रभु में रम जाऊँ।
प्रभु अनुरागी मैं कहलाऊँ।।
शुभमस्तु !
08.09.2025●10.15 आ०मा०
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