सोमवार, 15 सितंबर 2025

मुखड़ों में मुस्कान [ गीतिका ]

 557/2025


  


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


फसल   खेत     में    हरी-हरी     है।

मुखड़ों  में    मुस्कान     भरी     है।।


कोमल    घास     देख   दृग   हरषे,

बिछी    हुई    मखमली     दरी  है।


आश्विन   मास    गगन   है   निर्मल,

लहराती   अति     मंद    चरी    है।


कोकिल     मौन    पड़ी   बागों   में,

काँव-काँव  ध्वनि  बड़ी    खरी  है।


बढ़ता  नित    शीतत्व     धूप   का,

वर्षा    से      बदली     उबरी    है।


ठुमक-ठुमक    पथ   जाती   बाला,

लगता     कोई     चली     परी  है।


हुआ   शरद का 'शुभम्'   आगमन   ,

निर्मल    जल   से   भरी   सरी  है।


शुभमस्तु !


14.09.2025●11.00प०मा०

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