526/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
एक हड्डी के लिए
जो रीझ जाए श्वान है।
राह जन की रोक कर
डट कर खड़ा
सिखला रहा कानून
पथ पर अड़ा
उससे निबटना
क्या सहज आसान है ?
आदमी के वेश में
अब श्वानता है
भौंक से अच्छा-भला
डर काँपता है
बीच चौराहे
खड़ा इंसान है ?
धौंस धमकी
पहन वर्दी आ गया
गतिरोध का पाषाण
जन को खा गया
पहचान पाए हो
कभी ये श्वान है?
शुभमस्तु !
07.09.2025● 5.45 आ०मा०
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