544/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
कटि तट पर रख
घट पनघट को
चली नीर हित नारी।
साड़ी सुंदर
पीत हरी धर
चिकुर बिखेरे कंध
नग्न पाँव ही
बढ़ती जाती
घर का करे प्रबंध
लगा पाँव में
काँटा कोई
क्या करती बेचारी।
एक पाँव पर
साध देह को
उठा दूसरा पाँव
नहीं प्रतीक्षा
करती कोई
मिले पेड़ की छाँव
मुक्त कर रही
पाँव शूल से
उसे वेदना भारी।
इस्पाती घट
एक बड़ा-सा
एक बाँह से साध
बढ़ी जा रही
वह निष्कंटक
वन पथ में निर्बाध
कोमलता सौंदर्य
निहारें
लगती है अति प्यारी।
शुभमस्तु !
09.09.2025● 5.15आ०मा०
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