523/2025
शोर श्वानों का शान
[ नवगीत ]
©शब्दकार
डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
शोर श्वानों का
घरों की शान है।
मंत्र की ध्वनि
अब घरों से दूर है
भौंक कुत्ते की
यहाँ भरपूर है
कौन कितना आदमी है
श्वान की ही तान है।
जाँघ छू आशीष का
चलता नवल ये चलन है
चरण छूना दूर नर से
छलन ही बस छलन है
अतिथि स्वागत भौंक से है
भौंक का गुणगान है।
थालियों में जीमते हैं
श्वान घर में शान से
दूध छप्पन भोग देते
स्वागती सम्मान से
बालकों को कौन देखे
श्वान में सब ध्यान है।
शुभमस्तु !
07.09.2025●4.45 आ०मा०
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