रविवार, 7 सितंबर 2025

श्वान ही सिरमौर है! [ नवगीत ]

 525/2025


       


© शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


नव प्रतिष्ठा -मानकों में

श्वान ही सिरमौर है।


पल्लवित पालित शुनक

जब भौंकता है

गेह में सम्मान 

घर का दौड़ता है

आदमी के देश में

अब श्वान का ही दौर है।


रोटियाँ जिसको नहीं

वह श्वान की क्यों सोचता

एक निर्धन सर्वहारा

केश सिर के नोचता

बस अमीरों के लिए

सह वास का यह तौर है।


श्वान से नजरें मिलाना

अब नहीं आसान है

मालिकों से क्या मिलाओ

श्वान जिनकी शान है

एक कुत्ता एक कुतिया

एक पिल्ला और है।


शुभमस्तु !


07.09.2025 ● 5.15 आ०मा०

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