मंगलवार, 9 सितंबर 2025

कुछ - कुछ आँक रही हो [ गीतिका ]

 546/2025


      


©शब्दकार

डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्'


 प्याले    में   क्या   झाँक  रही हो।

मानो   कुछ-कुछ   आँक रही हो।।


लगता   अभी     नहा  कर  आई,

चिकुरों  से  जल धार     बही  हो।


बात  रात    की     याद    आ  गई,

जो प्रियतम   ने   गुप्त    कही  हो।


उचित और अनुचित   भी  क्या है,

वही  मानना     लगे       सही   हो।


दूध     जमाना     भूल    गईं  क्या,

खाने  में   अब  नहीं     दही     हो!


रात    गई    तो    गई    बात   भी,

नहीं   नायिके     तुम    विरही  हो ।


'शुभम्'  शांति   से चाय पिओ तुम,

बुरा न    मानो     जो   सतही  हो।


शुभमस्तु !


09.09.2025●9.15 आ०मा०

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