शुक्रवार, 12 सितंबर 2025

स्वागत में बस चाय [ कुंडलिया ]

 552/2025


     


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


                         -1-

घर-घर  में   हर भोर  में,खनक रहे कप-प्लेट।

चाय  पियें   नर-नारियाँ,   करें  दूध  से    हेट।।

करें     दूध  से   हेट, साथ  में  बटर ब्रेड    भी।

भूरी-भूरी      चाय, छोड़ते   नहीं   बैड     भी।।

'शुभम्'  बैड  की चाय,बैड -टी करती टर -टर।

उठते ही  मिल जाय,अगर सबको टी  घर-घर।।


                         -2-

स्वागत   में  अब  चाय  ही, बची हुई  है  शेष ।

बिस्कुट सँग  नमकीन  भी,बने  हुए जन मेष।।

बने    हुए   जन   मेष,  सुबह  का प्रातराश ये।

और न   सस्ता   एक, सभी के घर मिलता ये।।

'शुभम्' न और   उपाय,   द्वार  आए अभ्यागत।

गर्म -गर्म   है   चाय, करें   जन इससे स्वागत।।


                         -3-

धरती    जाई   चीन  की,पेय आधुनिक    चाय।

दूध   दही  प्रिय  हैं  नहीं,  किया मनुज  ने बाय।।

किया  मनुज  ने बाय,छाछ मक्खन क्यों  भाए।

भैंस   न    भायी  गाय,  रँगीली  चाय    लुभाए।।

'शुभम्'   बौद्ध  था  भिक्षु,पलक से बूँदें    गिरती।

उसी     रक्त  का  पेड़ ,चीन  की देती     धरती।।


                         -4-

नारी - नर   युवती- युवा,बालक वृद्ध    जवान।

नगर  गाँव  कस्बा  नहीं,मिलती चाय  जहाँ न।।

मिलती   चाय जहाँ न,  चाय  की टेर     मचाएँ।

करें    बैड- टी   पान, तभी  बिस्तर तज   पाएँ।।

'शुभम्'   चाय   का  साथ,करे मसले  हल भारी।

दीवाना      है     देश,  दिवाने  सब  नर - नारी।।


                         -5-

भक्षण     करें न  चाय  की, पत्ती गर्दभ    मेष।

बैल  बकरियाँ  भैंस  भी, छुएँ न चाय   विशेष।।

छुएँ न  चाय  विशेष, मनुज  ही पीता    केवल।

चुसनी  से  पी चाय,मनुज शिशु लेता  है  बल।।

'शुभम्'  न  लेश छिपाव,सुरावत करें न   रक्षण।

खग जलचर या ढोर,चाय का  करें न   भक्षण।।

शुभमस्तु!

11.09.2025●  10.00 प०मा०

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