सोमवार, 8 सितंबर 2025

रंग-बिरंगे रँग जीवन के [नवगीत ]

 538/2025


   

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


रंग -बिरंगे

रँग जीवन के 

कुत्ता या कि आदमी कोई।


कुत्ता गया

आदमी के सँग

उधर मनुज को डाबरमैन

मिलीं परस्पर

आदत उनकी

मिला मनुज-कुत्ते को चैन

एक- एक मिल

ग्यारह बनते

जाग गईं जो  किस्मत सोई।


सीख रहे हैं

दोनों मिलकर

नई-नई अधुनातन आदत

हाथ मिलाते

युगल परस्पर

करते आपस में वे  स्वागत

नई पौध

हरिआई देखो

जब कुत्ते ने कार भिगोई।


संस्कार का

लेना -देना

कुछ तो  नया रंग लाया

नहीं जानता था

जो करना

सभी श्वान ने सिखलाया

चादर ओढ़

सो रहा मालिक

उधर श्वान ने ओढ़ी लोई।


शुभमस्तु !


07.09.2025● 63.0प०मा०

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