558/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
हिंदी हिंद देश की आशा ।
नहीं न्यून किंचित तृण माशा।।
घुट्टी में माँ हमें पिलाती।
आ से अम्मा बोल सिखाती।।
हिंदी ही संस्कार हमारा।
जीवन का हर मिले किनारा।।
जननी जन्मभूमि जन्माती।
माँ की भाषा सुमन खिलाती।।
हिंदी का चरित्र चतुरंगा।
फहराती जो ध्वजा तिरंगा।।
हिंदी अपना मान बढ़ाए।
सदा प्रगति - पथ पर ले जाए।।
हेय नहीं अपनी यह हिंदी।
शुभता की प्रतीक है बिंदी।।
मौसी कभी न माता होती।
माँ की ममता में हैं मोती।।
मातृभूमि माँ को ठुकराए।
हिंदी का क्यों भक्त कहाए।।
वैज्ञानिकता से भर झोली।
निर्मित करती रंग - रँगोली।।
बावन वर्ण सुशोभित हिंदी।
वृथा न इसकी किंचित चिंदी।।
सहज सरल संस्कृत की जाई।
वही आज हिंदवी कहाई।।
'शुभम्' चलें हिंदी सिखलाएँ।
निज भाषा के गुण नित गाएँ।।
कविता लिखें गीत चौपाई।
विविध छंद की ममता पाई।।
शुभमस्तु !
14.09.2025●11.45प०मा०
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