सोमवार, 8 सितंबर 2025

नाव पड़ी मँझधार में [दोहा गीतिका]

 542/2025


            

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'



नाव   पड़ी    मँझधार   में, दुर्बल  हैं मस्तूल।

केवट   नहीं    निराश  है, नहीं करेगा भूल।।


नेताओं  को मिल रहीं,सब सुविधाएँ  मुफ्त,

उधर  देश   के   बाग  में, बोते बीज बबूल।


बना दिया  है   आदमी, मुफ्त   बाँट कर अन्न,

निपट  निकम्मा  कर दिया,कैसे चलें उसूल।


भेड़चाल   में  मस्त  है, जनता  सारी  आज,

चले न   सोच  विचार  के,बकती ऊलजुलूल।


देश  किधर को जा रहा,करे  न सोच विचार,

स्वार्थ   लीन   नर-नारियाँ, उगा रहे हैं   शूल।


बिना   किए    साहित्य  में, बाँट रहे सम्मान,

महक  रहे  उनके गले,  पाटल  के शुभ  फूल।


'शुभम्'  नहीं  औचित्य है, करें निरादर  आप,

बिना  किए   शुभ कर्म के,ओढ़ें लोग  दुकूल।


शुभमस्तु !


08.09.2025◆4.30आ०मा०

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