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[पितर, तर्पण, श्राद्ध,तिल,दर्भ ]
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
सब में एक
छूट गया परिवार जो,उसके मंगल हेत।
पितर देव आए हुए,भ्रमण करें समवेत।।
संतति का शुभ कर्म ये,करें पितर को तृप्त।
जल तिल से तर्पण करें, बनें नहीं अभिशप्त।।
मात-पिता को दीजिए, आजीवन सम्मान।
सर्वश्रेष्ठ तर्पण यही, संतति बने महान।।
पितुराज्ञा पालन करे, यदि सुयोग्य संतान।
तर्पण यह उत्कृष्ट है,तनता प्रगति वितान।।
श्रद्धा में ही श्राद्ध का, बसा मूल सर्वस्व।
जीवन भर रोटी न दें,फिर सब कुछ है ह्रस्व।।
श्राद्ध पक्ष बस पाख का,कभी न करते याद।
है कृतघ्न संतति वही, करे नित्य प्रतिवाद।।
जल तिल कुश जौ दूध से,करे श्राद्ध संतान।
सभी पितर हर्षित रहें,दें शुभ का वरदान।।
काले तिल हरि चाहते,रहते सदा प्रसन्न।
पितरों को प्रिय हैं वही, देना वही प्रपन्न।।
पावन जल को कर रही,दर्भ कुशा की घास ।
पितर हेतु माध्यम यही,जीवन भरे उजास।।
पितरों का होता नहीं, भौतिक दृश्य शरीर।
ग्रहण करें वे दर्भ से ,पावन पूत स नीर।।
एक में सब
पितर-श्राद्ध करते सभी,तर्पण कर जल दर्भ।
महत् सनातन धर्म है,पावनता के गर्भ।।
शुभमस्तु !
10.09.2025●8.30आ०मा०
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