533/2023
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●© व्यंग्यकार
● डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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निस्संदेह नाम में बहुत कुछ 'धरा' (रखा हुआ) है।तभी तो लोग अपने बच्चों का नामकरण संस्कार करने से पूर्व बहुत सोच - विचार करते हैं। कभी-कभी तो बच्चे के गर्भ में आने पर ही नामकरण कर दिया जाता है।वैसे हमारे यहाँ के लोग भी बड़े दूरदर्शी हैं। उनके निकट दर्शन की तो बात ही मत कीजिए।नव भ्रूण तो भला निकट दर्शन कम अंतर दर्शन में ही आता है।अर्थात वे अंतर दर्शन (गर्भान्तर - दर्शन) करके उसके सारे गुण,गरिमा,गुरूर,गौरव,ज्ञान आदि का अल्ट्रासाउंड ही कर लेते हैं और लड़की हुई तो सवित्री और लड़का हुआ तो सत्यवान नाम पहले से ही स्थापित कर देते हैं। भले ही उत्पन्न संतति विपरीत गुणधारी नाम धारी हो।वैसे भी कोई तृतीय संभावना की कोई आशंका वे कभी भी अपने मन में नहीं लाते।
नामों की समानता से कुछ सादृश्य गुण अवश्य आ जाते हैं। आने भी चाहिए। यदि गुण - सादृश्य की बात करें तो 'नारे' और 'नाड़े' में बहुत अधिक समानता है।किसी अंतर्वस्त्र का 'नाड़ा' क्या -क्या महत्त्वपूर्ण कार्य करता है ,यह सर्वविदित है। फिर जब उसका नाम चर्चा का विषय बना है तो गुण - वंदना भी क्यों न कर ली जाए ? 'नाड़ा' किसी अंतर्वस्त्र(पजामा या अंडरवियर) को मजबूती के साथ बाँधे रखता है। अर्थात समय - असमय उसे नीचे पतित नहीं होने देता।क्योंकि असमय नाड़ा -पतन मान मर्यादा का भी पतन कर सकता है।दूसरे शब्दों में कहें तो 'नाड़ा' मान वर्धक सुदृढ़ सूत्र है। बचपन से बुढ़ापे तक वह आजीवन साथ निभाता है। जरूरत पड़ने पर वह बोरा बाँधने के भी काम आ जाता है।इसकी विशेष बात यह भी है कि इसमें एक से अधिक जोड़ या गाँठ नहीं होना चाहिए। यदि ऐसा हुआ तो नाड़ा भी सत्रह का पहाड़ा बन जाता है और असमय बुरी तरह फँस जाता है।फिर तो क्या-क्या नहीं करवाता है ? यह तो वही जान सकता है ,जो इसका कभी अनुभव कर पाता है! आदमी के लिए हर तरह के अनुभव ले लेना भी जरूरी है।अन्यथा कभी - कभी अटक जाती बड़ी मजबूरी है। यह भी सत्य है कि नाड़ा मजबूत होना चाहिए।अन्यथा कभी भी खिसक जाने का खतरा सिर पर नहीं ,कमर पर मंडराता रहता है।यह नाड़ा भी उठने ,बैठने ,चलने,फिरने पर बड़े -बड़े तनाव सहता है।
कमर के 'नाड़ा' के समनामी है: 'नारा'। जब समनामी है तो कुछ गुण साम्य भी होगा ही। होना भी चाहिए। ये 'नारे' भी विविध कोटि के हो सकते हैं।सामाजिक, धर्मिक, राजनीतिक आदि आदि। सामान्यतः राजनीतिक नारे ही धूम मचाए रहते हैं।ये कम से कम शब्दों में बहुत कुछ कहते हैं। ये नारे नेताओं से जनता जनार्दन को नाड़े की तरह बाँधे रखते हैं।जैसे : 'अपना विकास :सबका विकास', 'देश की संपत्ति:सबकी संपत्ति', 'जो जमीन सरकारी है,वह हमारी है', आदि आदि।
नारे का मुख्य उद्देश्य और लक्ष्य है :बाँधना। इसीलिए सभी राजनीतिक दल नए -नए नारों के निर्माण करते हैं। नाड़ा तो अंतर्वस्त्र में छिपा रहता है ,इसके विपरीत 'नारा' नर ,नारी और नेता की ज़ुबान पर रटा रहता है। नाड़े में ही तो पार्टी की जान है, बस वह मजबूत होना चाहिए।नारा के अनुरूप कार्य करें चाहे न करें ,किन्तु अपने नारे को न भूलें। करें कुछ भी ,किन्तु नारों में खूब उछलें ऊलें।नारा ही तो अंततः पार्टी की जान है।नारा नेताजी की वह ऊँची मचान है, जहाँ बैठकर जितनी जोर से हो - हो करोगे ,काम आएगी।बिखरी हुई जनता को नाड़े की तरह बाँध लाएगी।जनता ही तो वह पाजामा है जो बिना 'नाड़ा' बनाम 'नारा' के खिसक - खिसक जाएगी। हो सकता है कि वह किसी और मजबूत नारे(नाड़े) में बंध जाए।जैसे बिना गाँठ का नाड़ा ठीक होता है , इसी तरह सही नाप - तौल का नाड़ा सबके लिए सुभीता होता है।
नारा और नाड़ा का गुण- सादृश्य चमत्कार पूर्ण है।इनकी गुणवत्ता की जितनी सराहना हो सके ,करनी चाहिए। जैसे कोई कमर नाड़े से सुदृढ़ रूप से आबद्ध है ,वैसे ही ये देश भी मजबूत ,आकर्षक और प्रदर्शनात्मक नारों से सुसम्बद्ध है। नाड़ा नहीं तो पाजामा क्या,उधर नारा नहीं तो देश क्या ! राजनीति भी क्या ! नेतागीरी भी क्या !इसलिए चुनाव पूर्व अपने घोषणापत्र में नए सिले - सिलाए नारे पेश किए जाने की अनवरत परंपरा है।जिसका निर्वाह प्रत्येक राष्ट्रीय या क्षेत्रीय पार्टी द्वारा किया जाता है।अंततः जब नाड़ा रूपी नारा नहीं होगा तो जनता को बाँधेंगे कैसे?
नाड़ा - बंधन देह का, कसो न ज्यादा और।
नारा रखें लुभावना, जनता का सिरमौर।।
नाड़ा नारा एक से, दृढ़ बंधन के सेतु।
इनके बहु उद्देश्य हैं, दल के बाँधो केतु।।
नाड़े की महिमा बड़ी, कौन न जाने आज।
जन-जन को नारा कसे,बँधता सर्व समाज।।
आओ हम मिलजुल सभी,कर नाड़ा गुणगान।
नव नारे निर्मित करें, प्रगतिशील पहचान।।
सोदर दोनों बंधु ये,बंधन इनकी शान।
नारा , नाड़ा से बढ़े, कर्ता का नित मान।।
●शुभमस्तु !
13.12.2023●10.00आ०मा०
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