557/2023
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●© शब्दकार
● डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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षड ऋतुएँ देतीं सौगातें।
एक - एक की सौ - सौ बातें।।
ऋतु वसंत ऋतुओं का राजा।
खिलते सुमन पवन भी ताजा।।
होली के रंग हमें खिलाता।
मोहक ऋतु वसंत मन भाता।।
फिर निदाघ के चलें झकोरे।
सूरज तपता दर पर मोरे।।
तरबूजा खरबूजा लाता।
मीठा आम संतरा भाता।।
चुस्की ठंडी - ठंडी आती।
गर्मी भले न हमें सुहाती।।
अब आती ऋतुओं की रानी।
वर्षा प्यारी देती पानी।।
धरती पर हरियाली छाती।
घर सड़कें जल मय हो जाती।।
वर्षा विदा शरद आ जाए।
किसे न समता आज सुहाए।।
फिर हेमंत धरा पर आता।
ठंडक का अनुभव करवाता।।
शरद शिशिर के बीच अनोखा।
मिलता है इस ऋतु में धोखा।।
पूस माघ में शिशिर न भाती।
थर - थर जन की देह कँपाती।।
गजक रेवड़ी चाय लुभाती।
मूँगफली हमको ललचाती।।
कंबल, शॉल, रजाई प्यारे।
स्वेटर ,कोट लुभाते न्यारे।।
ऐसे ही षड ऋतुएँ आतीं।
तरह - तरह के रंग दिखातीं।।
'शुभम्' चलें आनंद मनाएँ।
सभी खूबियों में शुभताएँ।।
● शुभमस्तु !
23.12.2023● 11.00आ०मा०
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