598/2023
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●© शब्दकार
● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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राम - से राम
सिया-सी सिया
न उनसा कोई और
धरा पर जिया।
मानवता के
आदर्श राम
शत -शत प्रणाम
प्रणिपात,
ग्रहण हम करें
मनुजता
जीवन का प्रभात,
विशिष्ट अवदात।
यह देह देश मम
अयोध्या मानस ,
बसे हैं राम जहाँ
और भी ठौर कहाँ!
खिले हैं कितने उपवन।
अजर अमर
आदर्श
राम के युग-युग,
भले आज है
दुनिया में कलयुग
बनाएँ त्रेता ये युग।
मनमानी को नहीं
राम राज कहते हैं,
राम वही हैं
जो सीमा तक
अति -आचार
सहन करते हैं।
कूटनीति को त्याग
जगाओ रामनीति ही,
राजनीति मत कहो
सत्य को नित अपनाएँ
राम - आदेश नीतिगत
आदर्श बनाएँ।
'शुभम्' असंभव नहीं
कभी कुछ,
काम-कामिनी से
दूरी का किया न
तुमने अपना रुख,
तो राम रहेंगे
बस पोथी के
पन्नों में बंद,
उधर जारी ही रहेंगे
नेताओं के छल-छद्म,
बाँटते भारत - रत्न
धातु के पद्म।
●शुभमस्तु !
29.12.2023●11.45आ०मा०
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