शुक्रवार, 22 दिसंबर 2023

धूप गुनगुनी ● [ दोहा ]

 546/2023

      

[ कंबल,रजाई,शीतलहर,शिशिर,गुनगुनी]

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● ©शब्दकार 

● डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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               ● सब में एक  ●

कंबल  मेरा   नाम   है, बल   में हूँ   मजबूत।

मेरे   भय    से   भागते,  जाड़े   के सब   भूत।।

आई   शरद  सुहावनी, कंबल लेकर    आप।

संबल  उसका   लीजिए,हटा शीत का     शाप ।।


विदा शरद ऋतु हो गई,सुखद रजाई  -  मोह।

कौन   भला   छोड़े   यहाँ,शिशिर करे  विद्रोह।।

नरम रजाई   ओढ़कर,मिले सुखद   अहसास।

जाड़े  की  यह  भेंट है, रखना सब जन   पास।।


हिमगिरि  पर होने लगा,हिम का भीषण पात।

शीतलहर के   कोप   का,  मैदानों   में   घात।।

शीतलहर से  काँपते,खग, जन, पौधे,   ढोर।

धूप  देख  हर्षित  सभी, छत  पर नाचे    मोर।।


 किट-किट  बजते  दाँत हैं,शिशिर सताए  देह।

श्वेत कोहरा   छा   गया,  छत पर बरसे   मेह।।

शिशिर काल में  पीजिए,गर्म गुड़ भरी चाय।

शीत  खड़ा  बाहर  रहे, और न  शेष   उपाय।।


धूप   गुनगुनी  सुखद  है,करना सेवन   नित्य।

देखो    प्राची   में   उगे,   मनमोहक  आदित्य।।

मिले गुनगुनी  धूप   में, 'डी'  का   प्रत्यामीन।

मत अवसर को छोड़िए,हे नर कुशल   प्रवीन।।

              ● एक में सब  ●

शीतलहर   कंबल लिए,सुखद रजाई   साथ।

धूप गुनगुनी भी मिली, कहे शिशिर ढँक हाथ।।


● शुभमस्तु !


20.12.2023● 7.15आरोहणम्

मार्तण्डस्य।

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