574/2023
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●© शब्दकार
● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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राम - रूप की
सरयू पावन
कर ले मन अभिषेक।
चौरासी लख
योनि भटक कर
धारी मानव देह।
भोग योनि में
भोग भोगता
रूप लिया नर खेह।।
राम भजो मन
राम नाम ही
जप सह पूर्ण विवेक।
योनि - योनि की
मैली चादर
धोने में क्या लाज?
जब जागे तू
तभी सवेरा
क्यों न जागता आज??
कर्म योनि है
मानव देही
लख चौरासी एक।
दर पर तेरे
राम विराजे
सजा आरती साज।
अभिनंदन में
क्यों न खड़ा हो
रामचन्द्र के आज।।
'शुभम्' बना ले
सिया राम को
अपनी सुदृढ़ टेक।
●शुभमस्तु!
26.12.2023● 6.45 आ०मा०
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