36/2023
●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●
●© शब्दकार
● डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्'
●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●
ये समाज
ये राजनेता
ये राजनीति
ये धर्माचार्य
ये बुद्धिजीवी
ये आम या खास
सबका पर्दाफ़ाश।
रँगे हुए एक ही रंग में
अपनी एक संकीर्ण तरंग में
हमाम ही नहीं
बाहर भी
नितांत नंगे ,
कहते हुए
हर- हर गंगे,
बहते हुए धार में,
एक ही रंग में
सिमटे हुए।
न कहीं मानवता
न कहीं न्याय,
घुमा फिरा कर
एक ही आंय बांय सांय,
अंधा नहीं
आँख वाला भी
बाँट रहा रेवड़ियाँ
जातिवाद की गर्म चाय।
चीखता रहे कोई,
कहता रहे अन्याय!
अन्याय!! अन्याय!!!
जाति ही इनका बाप!
जाति ही धाय माय!
करता रहे कोई हाय! हाय!!
कोई फर्क नहीं पड़ता,
चाहे सत्यवादी
कितना ही बिगड़ता!
भले फाड़ डाले
गुस्से में अपना कुर्ता।
जो जातिवादी करे
वही है सब सही,
सुनकर इनके कारनामे
बने दिमाग़ का दही,
ये भी खूब रही,
बढ़िया
मसालेदार बतकही।
●शुभमस्तु !
14.12.2023●7.00प०मा०
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें