शनिवार, 30 दिसंबर 2023

राम तरंगों से आवेशित ● [गीत ]

 599/2023

 

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●© शब्दकार

● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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राम - तरंगों 

से आवेशित

मेरे तन, मन, भाव।


कहाँ नहीं हैं

राम  देह में 

मिला न कोई ठौर।

पावनता किस 

छोर नहीं है

ऐसा  लगे न और।।


रात- दिवस हो

संध्या - प्रातः

एक  राम  का चाव।


मेरे मन में 

कहाँ नहीं वे

कविता का हर शब्द।

हुआ राममय

निकल न जाएँ 

होता शुभम् निशब्द।।


'शुभम् राम ही

साँचा'  लिखकर

जागा परम् लगाव।


मात शारदे 

'भगवत'  करता

विनती बार हजार।

राम बसें मन-

मंदिर मेरे

तरणी बना सवार।।


आज 'शुभम्' ने

सब कुछ पाया

बतलाते उर - हाव।


● शुभमस्तु !


29.12.2023●2.30प०मा०

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