589/2023
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●© शब्दकार
● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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राम लला की
लीला न्यारी
प्रकटे दशरथ - गेह।
पाप बढ़ा जब
इस धरती का
बना भयंकर भार।
संत जनों के
त्राता बनकर
दानव दल संहार।।
आए राघव
राम रूप में
कौशल्या- घर देह।
कारण बिना
न कारज होता
नहीं मात्र संयोग।
जैसी करनी
वैसी भरनी
करता है नर भोग।
रावण जैसे
रहे न भू पर
मिले अंत में खेह।
हुआ राम वन-
वास जानकी-
हाटक प्रियता मोह।
शूर्पनखा की
नाक कटी थी
रामानुज का कोह।।
भाव प्रतिशोध
हृदय दशकंध
चौर्यगत अति तेह।
●शुभमस्तु !
27.12.2023●12.00मध्याह्न।
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