शनिवार, 30 दिसंबर 2023

राम लला की लीला ● [ गीत ]

 589/2023

 

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●© शब्दकार

● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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राम लला की

लीला न्यारी

प्रकटे  दशरथ - गेह।


पाप बढ़ा जब

इस धरती का

बना भयंकर  भार।

संत जनों के

त्राता बनकर

दानव  दल  संहार।।


आए राघव

राम रूप में

कौशल्या- घर देह।


कारण बिना

न  कारज होता

नहीं  मात्र संयोग।

जैसी करनी

वैसी भरनी 

करता है नर भोग। 


रावण जैसे

रहे  न भू पर

मिले अंत में खेह।


हुआ राम वन-

वास जानकी-

हाटक प्रियता मोह।

शूर्पनखा की

नाक कटी थी

रामानुज का कोह।।


भाव प्रतिशोध

हृदय दशकंध

चौर्यगत अति तेह।


●शुभमस्तु !

27.12.2023●12.00मध्याह्न।

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