525/2023
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●© शब्दकार
● डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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घरनी की दो
मृदुल कलाई
खनकें चूड़ी बारम्बार।
पग में पायल
कमर करधनी
हाथों में संगीत उभार।
कहती हैं क्या
हरी चूड़ियाँ
खोलो साजन बन्द किवार।।
समझें क्या है
मेरे मन में
मुझे चढ़ा है तेज बुखार।
वीणा बजती
पिय अंतर की
नहीं बोलती सजनी बोल।
कैसे कह दे
लजियाती -सी
खड़ी चाहती दर को खोल।।
क्या करता वह
निपट अनाड़ी
पड़ा गले में जब भुजहार।
शांत हो गईं
मुखर चूड़ियाँ
क्षण भर को छाया मृदु मौन।
साँसें बोलीं
मौन साँस से
थमा कक्ष का पावन पौन।।
कभी बोलतीं
चुप हो जातीं
खन -खन चूड़ी दो रतनार।
बोला पति यों
'इस खन -खन से
घायल उर भर रहा हिलोर।
कैसे सँभले
तुम्हीं बताओ
चिड़ियाँ चहकीं होती भोर।।'
'आ जाओ हम
सप्त सुरों के
गीतों में कर दें शृंगार।'
'प्रियतम मेरे
ये सुहाग की
अमर प्रतीक शुभंकर नित्य।
चंद्र नगर से
मँगवाई हैं
अटल रहें जब तक आदित्य।।'
'शुभम्' ज्ञानदा
की शुभ चूड़ी
वीणा बन करतीं झंकार।
●शुभमस्तु !
09.12.2023◆9.30आरोहणम्
मार्तण्डस्य।
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