561/2023
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●© शब्दकार
● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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कहाँ नहीं हैं
राम हमारे
अपनी ढूँढ़ो देह।
कहते हो तुम
तुम लाओगे
मंदिर में श्रीराम।
अपनी देखो
योनि मानवो
चाह रहे निज नाम।।
राम यहाँ के
हर कण-कण में
खोजो अपना गेह।
इतिहासों के
पन्नों पर तुम
लिखना चाहो नाम।
दशरथ बनना
चाहत है क्या
पिया राम का जाम।।
अखबारों में
टी वी पर तुम
फैलाए अवलेह।
कितने आए
चले गए भी
तेरे जैसे लोग।
जिनको भी था
लगा अनौखा
राम -नाम का रोग।।
वक्त सिकंदर
होता केवल
शेष सभी है खेह।
● शुभमस्तु !
24.12.2023●3.00प०मा०
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